373 बिना डॉक्टरों के चल रहे सरकारी अस्पताल, ग्रामीणों की जान से हो रहा खिलवाड़


कटनी : भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत किसी से छुपी नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही, डॉक्टरों की कमी और संसाधनों की अनुपलब्धता ने ग्रामीण जीवन को संकट में डाल दिया है। देश के कई हिस्सों में ऐसे सरकारी अस्पताल हैं, जो कागजों पर तो पूर्ण रूप से संचालित हो रहे हैं, लेकिन हकीकत में वहां डॉक्टरों का नामोनिशान नहीं है। यह एक ऐसा दुर्भाग्यपूर्ण सच है, जो हर रोज़ अनगिनत ग्रामीणों की जान पर बन आता है। मध्य प्रदेष में ऐसे बहुसख्यंक गॉव है। जहॉ स्वस्थ सेवाए अपने आपाहिज पन को दिखा रही है। यहॉ पर मै सिर्फ केवल एक ग्राम की बात करूगा जिसका हाल कुछ ऐसा है। - कटनी जिले के ग्राम तेवरी गांव में रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि “हमारे गांव में अस्पताल तो बना है, लेकिन वहां कई महिने से कोई डॉक्टर नही है और सर्दी बुखार की दवाई ड्रेसर, नर्स एवं फर्मासिस्ट के द्वारा दे दिया जाता है। ऐसे में इलाज के लिए हमें लगभग 25 किलोमीटर दूर कटनी जिला अस्पताल या फिर प्राईवेट अस्पताल जाना पड़ता है, यह कोई एक-दो दिन की समस्या नहीं है, बल्कि वर्षों से यह स्थिति बनी हुई है। गांवों के लोग कई बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन को शिकायत कर चुके हैं, लेकिन नतीजा वैसा ही रहता है। कुछ जगहों पर डॉक्टरों की नियुक्ति तो होती है, लेकिन वे शहरों में ही अपनी पोस्टिंग की सिफारिश करवा लेते हैं या महीने में केवल एक-दो बार ही गांव जाते हैं। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों द्वारा भी इस गंभीर समस्या की ओर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसी हालत में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या ग्रामीणों की जान की कोई कीमत नहीं है?
*अस्पताल है, पर डॉक्टर नहीं*
ग्रामीण क्षेत्रों में बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) अक्सर स्थानीय लोगों की एकमात्र स्वास्थ्य सुविधा होते हैं। लेकिन ये अस्पताल केवल ढांचे तक सीमित हैं। न तो पर्याप्त डॉक्टर उपलब्ध हैं और न ही विशेषज्ञ चिकित्सक। एक सामान्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कम से कम एक MBBS डॉक्टर, एक महिला चिकित्सक और दो कंपाउंडर की व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन हकीकत ये है कि कई जगहों पर एक नर्स तक उपलब्ध नहीं होती।
*झूठे आंकड़ों की भरमार, जमीनी हकीकत विपरीत*
सरकार की ओर से जारी स्वास्थ्य रिपोर्ट्स में यह दावा किया जाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार सुधार हो रहा है। आंकड़ों में दिखाया जाता है कि अस्पतालों में डॉक्टर तैनात हैं, दवाइयों की उपलब्धता है और हर स्वास्थ्य केंद्र क्रियाशील है। लेकिन जब ज़मीनी हकीकत देखी जाती है, तो इन आंकड़ों की पोल खुल जाती है।
*निजी अस्पतालों की चांदी*
जहां सरकारी अस्पताल निष्क्रिय हैं, वहीं निजी अस्पतालों और क्लीनिकों की चांदी हो रही है। डॉक्टर सरकारी सेवा में रहते हुए भी निजी प्रैक्टिस करते हैं और ग्रामीणों को मजबूरी में मोटी फीस देकर इलाज कराना पड़ता है। यह न सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला है, बल्कि मानवाधिकार हनन भी है।
*सरकार की योजनाएं और जमीनी क्रियान्वयन में अंतर*
भारत सरकार और राज्य सरकारें समय-समय पर स्वास्थ्य सुविधाओं के सुधार के लिए अनेक योजनाएं लाती हैं, जैसे आयुष्मान भारत योजना, मातृ वंदना योजना, जननी सुरक्षा योजना आदि। लेकिन जब आधारभूत ढांचा ही मौजूद नहीं है, तो इन योजनाओं का फायदा ग्रामीण जनता को कैसे मिलेगा? आयुष्मान भारत योजना के तहत 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज तो कागजों पर उपलब्ध है, लेकिन जब नजदीकी सरकारी अस्पताल ही डॉक्टर विहीन है, तो उस कार्ड का क्या लाभ?

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